७७४ ॥ श्री बन्दे अली जी ॥
पद:-
बिहारी कि मुरली सुनो चित जोर।
मधुर मधुर क्या बाजत प्यारी छाई घटा घन घोर।
चपला चमक चमक चमकावै सखा सखि संग मोर।
बाम भाग बृषभानु नन्दनी देखें दृगन कि कोर।
झांकी जुगल लखत बनि आवत कहत लेत सुधि छोर।५।
सुर मुनि नभ ते फूल गिरावें जय जय करि सब सोर।
करत निहाल दयाल मनोहर यशुमति नन्द किशोर।
गावत राग रागिनी सब मिल नाचत करि झक झोर।
पवन देव तहँ अमित रूप धरि सब पर मुरछल ढोर।
दिब्य गुलाल मेंह लै छिड़कत बन के बयस किशोर।१०।
श्री जल देव लिहे पंखा कर हांकत सब ही ठौर।
शेष सहस फन छाता ताने आनन्द हिये हिलोर।
अगिन देव तहं बहुत रूप धरि लै मसाल सब ठौर।
आसमान शाम्याना ताने ठाढ़ो तहं कर जोर।
अवनि रूप धरि फ़रश बिछायो प्रेम में ह्वै सर बोर।१५।
नाना साज बजैं तहं सुन्दर सकै कौन करि गौर।
दौड़ धूप में भूषण बाजत नूपुर धुनि संग जोर।
फहर फहर हों बसन सुहावन अति सुगन्ध चहुँ ओर।
जमुना जी लखि जल में नाचैं उठत तहां क्या भौंर।
श्री मधुपुरी आरती साजे लागी चरनन डोर।२०।
गद गद कंठ प्रेम तन पुलकित चलत नैन झरि लोर।
सतगुरु बिन यह लीला दुर्लभ सत्य बचन शिर मौर।
सूरति शब्द का मारग पकड़ो छूटै मोर व तोर।
धुनि परकाश ध्यान लय पावो बनि जाओ बर जोर।
तन मन प्रेम की होय एकता चढ़ि जावो रंग बोर।
ान्दे अली कहैं हरि को सुमिरो क्यों बनि बैठे चोर।२६।
दोहा:-
कबहूँ जमुना के निकट कबहूँ बिपिन मंझार।
कबहूँ बृज में करत हैं लीला नन्द कुमार।१।
सतगुरु रामानन्द का चेला हूँ मैं जान
बन्दे अली है नाम मम मानो बचन प्रमान।२।