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७७९ ॥ श्री पीरू शाह जी ॥


पद:-

अदा मस्तानी क्या घनश्याम की तन मन लुभा लेती।

जहां मुरली बजा देते कि जब सुधि बुधि भुला देती।

जरा अबरू फिरा देवैं तो ठग तन के भगा देती।

मधुर मुसक्यान से दंदां चमक चहुं ओर छा लेती।

पगन के नूपरों की धुनि अजब बसुधा हंसा देती।५।

निरखतै बन परै यारों ज़बां बातैं चुरा लेती।

करो मुरशिद पता पावो नहीं माया गिरा लेती।

हुकुम मनसिज को दे कर के तुम्हैं रति संग फंसा देती।

अन्त जमदूतों से पकड़ा तुरत दोज़ख पठा देती।

कहा मानौ अगर मेरा करो हरि नाम की खेती।१०।

ध्यान धुनि नूर लय पावो देव मुनि संग खेला देती।

कमल सातौं औ षट चक्कर नागिनी को जगा लेती।

सुरति औ शब्द का मारग सहज ही में मिला देती।

सदा निर्बैर औ निर्भय तुम्हैं प्यारे बना लेती।

कहै पीरू छटा प्रिय श्याम की सन्मुख में छा देती।

जियत में मुक्ति औ भक्ती कर्म सारे मिटा देती।१६।