७८१ ॥ श्री फ़कीरा जी ॥
पद:-
भ्रात बहिनों सुनो चित दै जो मैं सब को सुनाती हूँ।
करो हरि का भजन निशि दिन यह सांचा पद बताती हूँ।
इसी से काम सब सरिहै तुम्हैं सोते जगाती हूँ।
जाय सतगुरु शरण लीजै सखुन जो मैं सिखाती हूं।
ध्यान धुनि नूर लय पावो द्वैत परदा हटाती हूँ।५।
चोर तन के भगैं सारे लिखा बिधि का मिटाती हूँ।
होय मन की मती स्थिर अमी अनुपम चखाती हूँ।
दीनता मातु मिलवा के प्रेम पथ पर चलाती हूँ।
जियत में देव मुनि दरसें उन्हीं की मैं संघाती हूँ।
मस्त हर दम रहो जिस में ब्रह्म अगिमी लखाती हूँ।१०।
लखो हरि को सबी जां तब मुक्ति भक्ती दिलाती हूँ।
अगर जो यह कहा मानो ठगों से मैं बचाती हूँ।
नहीं तो अन्त हो दोज़ख झूठ कह नहिं बकाती हूँ।
जो सत मारग पै हैं आये उन्हें सीने लगाती हूँ।
ज़रा धमकी में जे गिरते उन्हें कर गहि उठाती हूँ।१५।
श्री सतगुरु की जय जय जय फ़कीरा कह मनाती हूँ।१६।
सतगुरु मिले हमें जब श्री स्वामी रामानन्द।
कहती फ़कीरा तब से हर वक्त परमानन्द।१।