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७८२ ॥ श्री ललिता जी ॥


पद:-

होली खेलत अवध बिहारी मगन।१।

भरथ लखन रिपु दमन सखा संग उठत कोलाहल भारी मगन। होली०॥

आपस में सब के सब मारत हंसि हंसि के पिचकारी मगन। होली०॥

माता पिता गुरु निरखत बैठे प्रेम में तन मन वारी मगन। होली०॥

काँधा सोती अवीर औ कुम कुम भरि झोरी लियो डारी मगन। होली०।५।

सब के सब मुठ्ठिन भरि झोंकत तन छबि सोहत न्यारी मगन। होली०॥

संग में साज बजत बहु बिधि के राग ताल धुनि न्यारी मगन। होली०॥

अर्क सुगन्धित केवरा गुलाब क केसरि मृग मद डारी मगन। होली०॥

इतर फुलेल अनेक किसम के मलयागिरि रगरारी मगन। होली०॥

नर नारिन गृह निज निज साजे निरखत ठाढ़े अटारी मगन। होली०।१०।

संग समाज कृपा निधि आगे चलि भये सब सुख कारी मगन। होली०॥

हाट बाट द्वारेन और सब गृह राजत मुनि मन हारी मगन। होली०॥

भाभी निरखि प्रभु पर रंग छिरकैं फेरि अबीर को डारी मगन। होली०॥

कुम कुम ऊपर ते भुरकावैं शान्ति खड़े धनुधारी मगन। होली०॥

आरति साजि के फेरि उतारैं चरन कमल सिर धारी मगन। होली०।१५।

सुर मुनि नभ ते फूल गिरावैं बोलत जै जै कारी मगन। होली०॥

पगन कि आहट खल भल खल भल रंग बहत जैसे वारी मगन। होली०॥

श्री सरजू जी की छवि सुन्दर सोहत मंगलकारी मगन। होली०॥

मानहुँ ब्याही के आजहिं आईं ओढ़े सुरुख रंग सारी मगन। होली०॥

सतगुरु करि निरखै यह लीला तब हो जीव सुखारी मगन। होली०।२०।

ध्यान समाधि नाम धुनि पावै छाय जाय उजियारी मगन। होली०॥

सन्मुख राम सिया की झाँकी हर दम होय न न्यारी मगन। होली०॥

सुर मुनि नित सब दर्शन देवैं कोमल बचन उचारी मगन। होली०॥

ललिता कहै तन मन प्रेम लगै तब होय जियति भवपारी मगन। होली०।२४।


दोहा:-

राम कृष्ण औ बिष्णु को एक भाव जो मान।

ललिता कह जियतै मुकुत सो है भक्त महान।१।

आदि मध्य औ अन्त नहिं धन्य धन्य भगवंत।

निर्गुण से सर्गुण बनत सुर मुनि वेद भनंत।२।

सब में सब से अलग है जानै जानन हार।

ललिता कहत व चरन को बार बार बलिहार।३।

भक्तन हित अवतार लै हरति धरनि को भार।

ललिता कह प्रभु चरित तब गावै ते भवपार।४।