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७८९ ॥ श्री मुस्तरी जी ॥


पद:-

गऊ बच्छ से प्रेम करत जिमि तिमि श्री हरि से कीजै।

तब मानुष का जन्म सुफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै॥

जैसे दादुर बारि क प्रेमी वैसे हरि से कीजै।

तब मानुष का जन्म सुफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै॥

जैसे कुमुद निशा का प्रेमी वैसे हरि से कीजै।

तब मानुष का जन्म सुफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै॥

जैसे कमल सूर्य का प्रेमी वैसे हरि से कीजै।

तब मानुष का जन्म सुफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै॥

शान्ति दीनता मातु मिलै तब बैठि गोद पय पीजै।

तब मानुष का जन्म सुफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै।५।

भाई बहिनो तन मन लाय के राम नाम रट लीजै।

तब मानुष का जन्म सुफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै॥

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो बिरथा आयू छीजै।

तब मानुष का जन्म सुफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै॥

कहै मुस्तरी अन्त छोड़ि तन हरि पुर बासा लीजै।

तब मानुष का जन्म सफ़ल हो जियतै सब लखि लीजै।८।