८०३ ॥ श्री पुरई शाह जी ॥
पद:-
बलायें राम सीता की जियत जो पायगा यारों।
वही भव सिन्धु से छुट कर के हरि पुर जायगा यारों।
जो सतगुरु करिके मारग गहि दीन बन जायगा यारों।
वही अनुपम अमी पीकर मगन ह्वै जायगा यारों।
ध्यान धुनि नूर लय पाकर जगत बरतायगा यारों।
कहैं पुरई वही साधू जो यह धन पायगा यारों।६।