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८०८ ॥ श्री बलदेव प्रसाद जी ॥


छन्द:-

मिल्यो धाम बैकुण्ठ मोहिं पाप भये सब माफ।

हरि की लीला अति अगम बात मानिये साफ़।१।

मन ही मन सुमिरन किहेन राम नाम मैं जान।

पर स्वार्थ अरु दान कछु यथा शक्ति किहों मान।२।


सोरठा:-

कह बलदेव प्रसाद मानुष का तन पायके।

छोड़ि कपट बकवाद भजै नाम मन लायके।१।