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८०७ ॥ श्री सुभान शाह जी ॥


पद:-

कैसे बने हैं रसीले श्याम श्यामा के नैनां।

मन्द हंसि निखुम चितवनि प्यारी रहि रहि मारत सैना।

चाल चलत कर से कर पकड़े बोलत मधुरे बैना।

हर दम झांकी सन्मुख निरखौं साफ़ करो दिल ऐना।

जियतै मानुष तन फल पावो दुबिधा नेक रहै ना।५।

सतगुरु करि सुमिरो निशि बासर तब जमदूत गहै ना।६।

साधन सिद्धि होय जब भाई तब छूटै मन धैना।७।

कहैं सुभान अन्त हरि पुर चलु नाम का संग लै पैना।८।