८११ ॥ श्री बीर बल जी ॥
दोहा:-
श्री सरस्वती मातु का, कछु सुमिरन हम कीन।
या से अन्त समय हमें, भेज बिष्णु पुर दीन।१।
कहैं बीरबल आय, सब बिधि तहँ पर सुक्ख है।
सुमिरन मातु क भाय, काटि दीन मम दुःख है।२।
दोहा:-
श्री सरस्वती मातु का, कछु सुमिरन हम कीन।
या से अन्त समय हमें, भेज बिष्णु पुर दीन।१।
कहैं बीरबल आय, सब बिधि तहँ पर सुक्ख है।
सुमिरन मातु क भाय, काटि दीन मम दुःख है।२।