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८१६ ॥ श्री अशोक जी ॥


दोहा:-

विद्यादान औ धर्म बहु जासे जो बनि जाय।

या संसार में आय के सो करि लेवे भाय।१।

कह अशोक नर तन सुफल ता को लीजै जान।

नाहीं तो भव सिन्धु से छूटव कठिन महान।२।