८२३ ॥ श्री करीमा जी ॥
पद:-
राम सीता कि छबि देखो क्या प्यारी है।
देखते हैं वही जिन तन मन वारी है।
ध्यान परकाश लय धुनि सुनै जारी है।
सांचे मुरशिद मिले उनकी बलिहारी है।
उन करम रेख पर मेख़ को मारी है।५।
दीनता प्रेम पाकर कपट टारी है।
जाल भव सिन्धु का यह बड़ा भारी है।
बिना सुमिरन करीमा कहैं ख्वारी है।८।