८२८ ॥ श्री असगरी जान जी ॥
पद:-
शुक्र हर दम करो यारों अबादा कर रहे कब का।
फ़ना फ़िल्ला जियत में हो वही सच्चा गदा रब का।
बड़े फौरेब का चक्कर जीव तामें पड़ा चभका।
बिना मुरशिद उठै कैसे दिनो दिन जात है दबका।
खुदी मेटै दुई छूटै आप में आप लखि चभका।५।
चोर तन के सभी वश हों रहे जो राति दिन धमका।
बशर तन पा करो सुमिरन नहीं हो सामना जम का।
असगरी कह सखुन मानो न हो ग़ाफिल अभी तड़का।८।
दोहा:-
मुरशिद हमारे आला श्री रामानन्द स्वामी।
चेली बना संभाला कह असगरी नमामी।१।