८३० ॥ श्री नीमा जी ॥
पद:-
रहैं हर दम मेरे सन्मुख में जोड़ी लाल मुनियां की।
छटा श्रृंगार छबि अनुपम मन्द मुसक्यान गुनियां की।
अधर पर हैं धरे मुरली सुरन तन मन हरनियां की।
गले में बांह दे राधे लखैं हरि मुख दृगनियां की।
करो सतगुरु भजो हरि को जगत जिन ताना तनियां की।५।
सुरति को शब्द पर धर कर सुनो धुनि नाम धुनियां की।६।
ध्यान परकाश लय पाओ जहां सुधि बुधि भुलनियां की।
कहैं नीमा तभी भाई छुटैगी सीत दुनियां की।८।