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८३१ ॥ श्री बेगा जी ॥


पद:-

बिना सतगुरु के निज घर की मिलत यारों न गल्ली है।१।

डूबि मंझधार में जावो जहां किश्ती न बल्ली है।२।

मिला हरि नाम धन जिनको उन्हीं को तो तसल्ली है।३।

करै दीदार वह हरदम कहै बेगा न पल्ली है।४।