८३५ ॥ श्री इमामन जी ॥
पद:-
दीदार हरि क कीजै कैसी करैं निगाहैं।
जो भक्त हरि के प्यारे उनके बचन निबाहैं।
हर वक्त देते दर्शन तन मन से उनको चाहैं।
हैं प्रेम से वह मिलते वैसे तो हर जगह हैं।
तब खेल आप करते वे समुझ को अथाह हैं।
मुरशिद बिना इमामन कहती न मिलती राह है।६।