८३६ ॥ श्री सकूना जी ॥
पद:-
भजन बिन बिरथा मानुष देह।
मातु पिता भ्राता सुत बनिता और पुर धन निज गेह।
मैथुन निद्रा जल भोजन करि भूले हरि से नेह।
जिस तन में तू हम हम बोलत सो जरि ह्वै है खेह।
यह सुख छिन में उपजत बिनसत जिमि अकाश में मेह।५।
बिरथा उमर गपाष्टक में गई तुझ से नीकी रेह।
ध्यान प्रकाश धुनी लय कर तू तै करअपना गेह।
कहैं सकूना श्री सतगुरु करि करु सांचा असनेह।८।
दोहा:-
सतगुरु रामानन्द मोहिं जप बिधि दीन बताय।
रोम रोम ते नाम धुनि राम सिया दरशाय।१।
सुर मुनि सब के दरश हों को करि सकै शुमार।
कहैं सकूना गुरु चरन बार बार बलिहार।२।