८४३ ॥ श्री पीरी जी ॥
पद:-
घरवार ऐशो निशात छोड़ा सिय राम हित जिन लेली फ़कीरी।१।
मिलैंगे उनको दिलों से दिल भर चखै वह अनुपम अमीं कि शीरीं।२।
हुइ रिहाई जहां से उनको लगैगी अब फिर कभी न फेरी।३।
बगैर मुरशिद न दस्त आते सखुन यह सच्चे सुनाती पीरी।४।
शेर:-
छानो न खाक बन बन पासै में हैं तुम्हारे।
कहती है पीरी सिय हरि प्राणों के प्राण प्यारे।१।