८६२ ॥ श्री मुल्ला जी ॥
शेर:-
एक दिन करिहैं प्राण पयान यहां नहि कोई अंड़े।
तब तो चलिहै तन असमसान रहैं सब ठाठ पड़े।
पिता माता भ्रात सुत नारि मित्र नातेदार खड़े।
सब स्वार्थ हेतु रहे रोय नीर नैनन से झड़े।
चित चेतत हौ क्यों नाहिं बनत जग आनि बड़े।५।
अब तुमरी बदि कहौ कौन जंग दूतन से लड़े।
लै गहि इजलास पै जाय मिलै तहं दुःख कड़े।
फिर नर्क में छोड़ैं धाय भरे बहु हौज सड़े।
जहँ ऊपर को हैं पैर शीश नीचे हैं गड़े।
मुल्ला सब से कहत सुनाय भजन बिन जैहौ जड़े।१०।