८७२ ॥ श्री नियाज़ अली जी ॥
दोहा:-
कहन के पण्डित और हैं, करन के पण्डित और।
करन के पण्डित मौर हैं, कहन के पण्डित कौर।१।
सतगुरु बिन हरि नहिं मिलैं चलै न एको गौर।
भटकि भटकि जन्मो मरो लगी रहै यह दौर।२।
तन मन प्रेम कि एकता करिके ढोरों चोर।
नियाज़ अली कह भाइयों तब छूटे भव लौर।३।