८७३ ॥ श्री काज़िम हुसेन जी ॥
पद:-
मार्ग मुरशिद से जान लो तो खुदा खैर करै।
करिके परतीति मान लो तो खुदा खैर करै।
नाम का ताना तान लो तो खुदा खैर करै।
नूर लै धुनि औ ध्यान लो तो खुदा खैर करै।
रूप सब सुख कि खान लो तो खुदा खैर करै।५।
प्रेम में तन मन सान लो तो खुदा खैर करै।
अन्त हरि पुर में थान लो तो खुदा खैर करै।
जियति यह छानि ज्ञान लो तो खुदा खैर करै।८।