८७७ ॥ श्री दिनेश जी ॥
पद:-
मुरशिद करो धुनि ध्यान लो लै नूर ख्वदा का।१।
हर वक्त रूप सन्मुख मस्तानी अदा का।२।
कटि जाय जियति ही में दुःख भव के फंदा का।३।
कहता दिनेश अंत पास बास जुदा का।४।
पद:-
मुरशिद करो धुनि ध्यान लो लै नूर ख्वदा का।१।
हर वक्त रूप सन्मुख मस्तानी अदा का।२।
कटि जाय जियति ही में दुःख भव के फंदा का।३।
कहता दिनेश अंत पास बास जुदा का।४।