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८८५ ॥ श्री भड्डरी जी ॥

जो पुरुष पर स्त्री के गर्भ कर देते हैं उनको १०० (सौ) जन्म तक तरुण अवस्था में जलोधर रोग हो जाया करता है। उसी के द्वारा शरीर गत हुआ करते हैं इनका पाप राम नाम से नाश होता है।

वार्तिक:-

जिन स्त्रियों का पाणि ग्रहण नहीं हुआ और युवा अवस्था को प्राप्त हो गईं और कामातुर हो कर पर पति से भोग किया सिर्फ एक ही बार वह फिर अगले सात जन्मों तक तरुणाई में बैधब्य को प्राप्त होती हैं। इस पाप का उद्धार हरि नाम ही से हो सकता है। जब कोई सतपुरुष मारग सुझा देवै। जिन अबलाओं के कोई औलाद नहीं होती है उन्होंने प्रथम जन्म में पर पुरुषों से धन लेकर बहुती स्त्री अबलाओं का धर्म भृष्ट कराया है। उनकी गती हरि नाम से ही होगी। दूसरा कोई उपाय नहीं है। नहीं तो उनको सौ जन्म तक कोई सन्तान न होगी।

 

जिन अबलाओं की सन्तान पैदा होकर कुछ दिन जीने के उपरान्त मर जाती हैं या तुरत मर जाती हैं या पेट में मर गईं या गर्भ ही पात हो गया, वह उस जन्म का पर सन्ताप है जो कि दूसरे के बच्चों को देख देख कर जलतीं थीं। इनका दुख भगवान के भजन करने ही से मिटेगा कोई सामान्य बात नहीं है। यह मसल मशहूर है कि पर सनतापी सदा दुखी। तब सुखी कैसे हो। यह पाप दस जन्म तक रहता है।

 

जो स्त्रियां पर पुरुषों से गर्भ धारण करके गिरा देती हैं या दूसरों के गर्भ गिराती हैं, वह दो सौ जन्म तक युवा अवस्था के समय अन्धी हो जाया करती हैं। यह पाप ईश्वर आराधन ही से छूटता है। और जो पुरुष गर्भ पात कराने में मदद करते हैं उनको भी यही सज़ा मिलती है।

 

 

जिन अबलाओं ने निज पति का शीश काटि के पर पति ग्रहण किया है वह आगै सौ जन्म तक नपुंसक होंगी। उनका पाप राम नाम से ही कटैगा।

 

इन सब पापों की सज़ा पहले नर्क में कल्पों भोगनी पड़ती है, फिर यह सजा मृत्यु लोक में भोगनी पड़ती है। और सन्तों की सेवा से अगर तन मन प्रेम लगाकर सन्त सेवा की जाय तो सारे पाप नष्ट हो जांय। संत और भगवान में कोई भेद नहीं है। परन्तु संत बड़े भाग्य से मिलते हैं।

 

दोहा:-

कहै भड्डरी सुनो सुत, हमहू कछु कह दीन।

राम नाम सुमिरन करै, सोई पासा लीन।१।