८९३ ॥ श्री गौहर जान जी ॥
पद:-
पिरोती हूँ तेरे ग़म में मैं आँसू नन्द के लाला।
अहिर निसि चैन नहीं पड़ती जिगर में कसि लगा भाला।
वह तिरछी चाल औ चितवन जरा दिखला दे मतवाला।
सुना तुम तो दया सागर कहाते फिर दया टाला।
प्राण अब रुक नहीं सकते बिरह अगिनी जला डाला।५।
दिखा सूरत हरा तन मन कहां बैठे लगा ताला।
मिलो प्यारे चिपट करके नहीं तो भेजो सुख साला।
कहैं गौहर बिना मोहन बृथा मानुष कहै छाला।८।