८९२ ॥ श्री गणेश दत्त जी ॥
पद:-
नौबत गगन में बाजत हर दम सुनिये सन्तों तन मन लाय।
सतगुरु बिना भेद नहि पैहो यह बिचित्र पंडिताय।
या से पाठ लेव दुख छूटै हर दम हिय हर्षाय।
सुनो नाम धुनि ध्यान में जावो सुर मुनि दर्शैं भाय।
जोति प्रकाश समाधी होवै सुधि बुधि सवै भुलाय।५।
हर दम झांकी सन्मुख निरखौ राम सिया सुख दाय।
कुण्डलिनी षट चक्र कमल तब सातों परैं दिखाय।
अन्त समय हरि धाम को चलिये कहैं गनेश सुनाय।८।