८९८ ॥ श्री धौंकल दास जी ॥
पद:-
सतौगुण का जो है प्राणी उसे कलयुग में सतयुग है।
नाम धुनि रूप पहिचानी उसे कलयुग में सतयुग है।
धारना ध्यान लै जानी उसे कलयुग में सतयुग है।
कर्म शुभ अशुभ में फानी उसे कलयुग में सतयुग है।
लखै परकाश सो ज्ञानी उसे कलयुग में सतयुग है।५।
जियति सब जानि मन मानी उसे कलयुग में सतयुग है।
श्री सतगुरु बचन मानी उसे कलयुग में सतयुग है।
मुक्ति औ भक्ति का दानी उसे कलयुग में सतयुग है।८।
दोहा:-
धौंकल दास कि बिनै यह जब तक द्वैत है लागि।९।
तब तक राम के नाम सें जीव सकै किमि पागि।१०।