९०६ ॥ श्री बृज नाथ जी ॥
पद:-
बिना सिय राम को देखे हमे नहि चैन आता है।
लगन जिसकी लगी जासे वही सको स्वहाता है।
करै तन मन लगा सुमिरन वही आनन्द पाता है।
युगल छबि सामने हरदम निरखता मुस्कराता है।
ध्यान धुनि नूर लै होती जहां सुधि बुधि भुलाता है।५।
धन्य उस जीव को कहिये जियति भव पार पाता है।
बिना मुरशिद किये मारग नहीं यह जाना जाता है।
भेद जो पा गया यारों वही गोता लगाता है।
जहां चाहै वहां जावै सबी तीरथ नहाता है।
देव मुनि रोज दें दर्शन सवों से जोड़े नाता है।१०।
राम सीता की जै जै जै जौन जन नित मनाता है।
कहैं बृजनाथ तन तजि के अचलपुर बास पाता है।१२।