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२ ॥ श्री बांके लाल जी ॥


ध्रुपद:-

धनि धनि श्री सीता राम धनि धनि श्री राधेश्याम

धनि धनि श्री रमा बिष्णु सुर मुनि बस जाके।

सुमिरत नित करत गान राखत नहिं सान मान

पूजत अरु धरत ध्यान फणपति शिव छाके।

दीनन पर ह्वै दयाल करते पल में निहाल ऐसे हैं प्रणत पाल

भक्तन रुख झाँके।

दुष्टन को दें संहारि निजपुर फिरि दें बिठारि

ऐसे करि करि उधार काटत दुख आंके।

तीनो प्रभु एक जान तीनो शक्ती समान

बिरदावलि को बखानि शारदबिधि थाके।

तन मन करि एक लेंय सूरति सो शब्द देंय

जियतै सब निरखि लेंय कहत सत्य बांके।


दोहा:-

सोऽहं का आधार है ओंकार का प्राण।

रेफ़ बिन्दु वाको कहत सब में व्यापक जान।१।

बिन्दु मातु श्री जानकी रेफ़ पिता रघुनाथ।

बीज इसी को कहत हैं जपते भोलानाथ।२।

हरि ओ३म तत सत् तत्व मसि, जानि लेय जपि नाम।

ध्यान प्रकाश समाधि धुनि दर्शन हों बसु जाम।३।

बांके कह बांका वही नाम में टांकै चित्त।

हर दम सन्मुख हरि लखै, या सम और न बित्त।४।