९ ॥ श्री रघुवर प्रसाद जी ॥
पद:-
आवै कोइ चोर लवार बशर रहने का उसको थान न दो।
भारी कोइ आफ़त आन पड़े सुमिरौ हरि मन दौरान न दो।
परतीत न हो जिसको नेकौं उसको प्यारे गुरु ज्ञान न दो।
बे जाने बूझे मारग पर लो मानि कभी हठ ठान न दो।
जो बात तुम्हैं नहिं हासिल है पढ़ि सुनि के ताना तान न दो।
कुल जिसका तुमको नहिं वाकिफ़ बरतन में अपने खान न दो।६।