१२ ॥ श्री रूप जी ॥
पद:-
सतगुरु करि सुमिरौ अष्ट जाम प्रिय श्याम सदा सन्मुख ही रहैं।
तन मन से प्रेम लगै जिसका सो सूरति शब्द क मार्ग गहै।
नाहीं तो घूमै चौरासी कल्पौं दुख नाना बिधि के सहै।
विश्वास बिना कछु काम न हो आगे फिर कैसे जान चहै।
जब दीन बनै सब हो हासिल तब दुःख औ सुःख समान सहै।
सब इच्छा गत होवै जियतै कहै रूप कहौ फिरि काह कहै।६।