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२४ ॥ श्री दिलदार खां जी ॥


शेर:-

बांगों से तन सब चूर है। क्या खुदा बहिरा सूर है॥

हर जां में वह भरपूर है। माने तु उसको दूर है॥

मुरशिद बिना तू कूर है। पाये न उसका नूर है॥

वरजिस तो कर क्यों झूर है। सुनु साज अनहद तूर है।४।

ऊपर से बनता घूर है। मन में समाई हूर है॥

लै ध्यान धुनी हजूर है। जपु नाम रूप क मूर है॥

नेकौं तुम्हैं मगरूर है। उसको नहीं मंज़ूर है॥

तन मन से प्रेम में चूर है। दिलदार खां कह सूर है।८।