४७ ॥ श्री विश्वकर्मा जी ॥
चौपाई:-
आठ बीज बरनौं सुखदाई। सुनिये तन मन प्रेम लगाई।
पूजन जाप करै जो कोई। सबै कामना पूरन होई।
सोऽहँ ओंकार रँकारा। क्लीं श्रीं औ है हुँकारा।
ह्रीं ल्रीं मिलि आठौं भयऊ। जप पूजन करि हम सुख लहेऊ।
तनमैता करिहौ जब भाई। बीज रूप ह्वै जाव हेराई।
प्रभु इच्छा से फिरि बिलगैहैं। कहैं विश्वकर्मा बनि जैहैं।६।