४८ ॥ श्री दुलारी माई जी ॥
चौपाई:-
तन मन ते पति सेवा कीन्हा। अन्त समय हरि पुर चलि दीन्हा।
कहैं दुलारी तहं सुख भारी। बरनत बनै न रसना हारी।१।
चौपाई:-
तन मन ते पति सेवा कीन्हा। अन्त समय हरि पुर चलि दीन्हा।
कहैं दुलारी तहं सुख भारी। बरनत बनै न रसना हारी।१।