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७१ ॥ श्री उत्तान पाद जी ॥


पद:-

हरि हर नाम कि अकथ बड़ाई।

सुर मुनि बेद शास्त्र नित गावत अगणित जन्म न सकत सेराई।

अगम अपार अकह यह जोड़ी है एकै दुइ कहन में आई।

चारि पदारथ करतल होवैं तन मन प्रेम से जो जन ध्याई।४।