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७४ ॥ श्री रामानन्द राव जी ॥


पद:-

क्या बतलावैं कुछ कहा नहीं अब जाता।

सन्मुख हर दम घनश्याम मेरे दिखलाता।

या से हमको अब और कछू न स्वहाता।

तन से मन कोई तरफ़ नहीं है जाता।

खाने पीने में कोई स्वाद न आता।५।

खा लेते हैं जो कोई प्रेम से लाता।

कबहूँ तो मोहन मुरली खूब सुनाता।

कबहूँ तो भाव बताय के गाना गाता।

कबहूँ नूपुर धुनि छम छम नाचि बजाता।

कबहूँ उठाय के हाथन पर उर लाता।१०।

कबहूँ मुख चूमै नैन कि सैन चलाता।

कबहूँ कर से कर पकरि के साथ नचाता।

कबहूँ संघै में बैठि के भोजन पाता।

कबहूँ साथै में सोवत आनन्द दाता।

करता संघ में बहु खेल जौन मन भाता।

बस इसी में रामानन्द राव है माता।१६।