७७ ॥ श्री पोले शाह जी ॥
पद:-
मिटि जात करम गति हरि के भजे पढ़ि सुनि सुर मुनि सब कह्यौ है सही।
अब करु सतगुरु तन मन चित दे विश्वास बिना कछु होत नहीं।
क्या मारग सूरति शब्द क है जप होत सदा नहिं माल चही।
बाजा अनहद हर दम सुनिये क्या ध्यान में लीला दर्श रही।४।
परकाश समाधि में जाय मिलो जहं सुधि बुधि नेक न रहत मही।
उतरौ फिरि झाँकी दिब्य लखौ सन्मुख सिय राम की राजि रही।
यह बात भ्रात बहिनो सब हित हम जानि मानि कै ठीक कही।
पोले कह जियतै मुक्ति भक्ति तन छोड़ि अचलपुर बास लही।८।