७६ ॥ श्री पीतम सिंह जी ॥
पद:-
पाय नर तन नाम हरि का जान ले तो पूत है।
नाहीं तो उस से है भला जो करत वह मल मूत है।
अन्त में लै नर्क जाते पकड़ि जम के दूत है।
सतगुरु से नाम को जान के बन जाते जे मजबूत है।४।
आते न उनके पास पहिले ही चुके वै कूत है।
रूप ध्यान प्रकाश लै मिल जात नाम के सूत है।
कहता है पीतम सिंह जियतै बस किया सब भूत है।
निर्बैर निर्भय हो गया मिटि गई तन मन छूत है।८।