११९ ॥ श्री सोऽहँ स्वामी जी ॥ दोहा:- सोऽहँ कह सोऽहँ जपो सोऽहँ जाप अखण्ड। सतगुरु से बिधि जान लो होय न फिरि भव दण्ड॥