१२० ॥ श्री बिलासा माई जी ॥
पद:-
मुरझा गई मैं गम में हा हरि की छटा मिलती नहीं।
आँसू पी पी के रहूँ भूख तो लगती नहीं।
झलकी दिखा लूटा मुझे अब मैं तो हट सकती नहीं।
कहती बिलासा आ मिलो लागी लगन कटती नहीं।४।
दोहा:-
हरि में जाकी प्रीति हो, सो है चतुर सुजान।
नाहीं तो फिरि अन्त चलि, पावै नर्क में थान।
नाना बिधि के दण्ड जम, देंय करैं हैरान।
कहै बिलासा भजन बिन, ठीक न मिलै ठेकान।४।