१२३ ॥ श्री जगमोहन सिंह जी ॥
पद:-
दुनियां की बातन पर लात कसि मारि देव
देखौ फिरि श्याम नित्य श्यामा हैं संग में।
अब ही तो गप्प सप्प हाँकत फिरत हौ यार
जानि परी अन्त जब गहैं जम अंग में।
चूर चूर कर देत न बोलत बनैगो ताहिं
बांधि कढ़ि लावैं तुम्हैं लोहे के तंग में।
जीव तो अमर पै कलेश होय नाना बिधि
या से कहा मानो रंगौ कृष्ण नाम रंग में।४।
सतगुरु से जानो बिधि ध्यान धुनि नूर होय
लय में समाय जाव जीति आवो जंग में।
सुर मुनि औ शक्तिन की फौज क्या संघ रहै
निरभय हमेशा रहौ प्रेम की उमंग में।
हिम्मत न हारे सो जियति सब जानि लेय
बिना पिये नशा कहूँ आवत है भंग में।
कहत जगमोहन सिंह सिंह के बालक ह्वै चेतौ
उठि बैठो कहां परयौ बेढँग में।८।