१२७ ॥ श्री खर खरी माई जी ॥
पद:-
बहुत नर नारियाँ कहते भजन करने कि नहिं फुरसत।
कार्य्य अधरम के करने में मिलै उनको सदा फुरसत।
अन्त जमदूत लै चलिहैं न बोलैं है नहीं फुरसत।
नर्क में हर समै मारैं मिलै तब भी नहीं फुरसत।४।
पाय नर तन बृथा खोया भला उनको कहाँ फुरसत।
जोनि नाना में पड़ि भोगैं बिना सुमिरन नहीं फुरसत।
हमै उपदेश करने के लिये सुन लो मिली फुरसत।
तुम्हैं सुनि ख्याल करने में नहीं नेकौ मिलै फुरसत।८।
दोहा:-
सच्चाई तन से गई, फुरसत कहां से होय।
बहु प्रकार के पाप करि, रहे बीज नित बोय।१।
सतगुरु बिन सुधरै नहीं, पाप करै को नाश।
या से चित चेतौ सबै, कटि जावै भव त्रास।२।