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१३५ ॥ श्री इसहाक जी ॥


पद:-

मलक के ऐश में दुख है अमीरी है फ़कीरी में।

दीन बनना पड़ै पहिले पहुँचि जावो अखीरी में।

कहै इसहाक मुरशिद कर चलो तो इस लकीरी में।

नहीं तो अन्त हो दोज़ख पड़ो यारों जखीरी में।४।