१३६ ॥ श्री टटोल शाह जी ॥
पद:-
उतरते जौन ऊपर ते उन्हें औतार कहते हैं।
रमे सरकार हैं सब में जगत हित खेल करते हैं।
जहाँ जैसी जरुरत हो वैस ही रूप धरते हैं।
चारि दुइ तीनि या एकै बन के असुरन उधरते हैं।४।
दीन जे भक्त हैं हरि के उन्हैं हर दम संभरते हैं।
नीक नागा अंश सब हैं कर्म चक्कर में फिरते हैं।
उन्हैं कृपालु कृपा करि आप ही खुद सुधरते हैं।
करो सतगुरु जियति जानो वही भव से उबरते हैं।८।
शेर:-
कहने कि बात है नहीं गहने कि बात है।
पढ़ने कि बात है नहीं करने कि बात है।
सुनने कि बात है नहीं लखने कि बात है।
धरने कि बात है नहीं चखने कि बात है।४।
फेंकने कि बात है नहीं बंटने कि बात है।
उड़ने कि बात है नहीं मिलने कि बात है।
भुकने कि बात है नहीं सहने कि बात है।
हंसने कि बात है नहीं सिखने कि बात है।८।