१५६ ॥ श्री राम टहल दास जी ॥ चौपाई:- भोजन संतन को हम फेरा। अन्त समय हरि पुर भा डेरा॥ राम टहल कह सुख तंह ऐसा। निरखत बनै न बरनत वैसा।२।