१६० ॥ श्री किंकर दास जी ॥
चौपाई:-
जूठनि सन्तन की हम पावा। अन्त समय हरि धाम सिधावा।
बृद्धावस्था छूटि बन्दगी। याही बिधि ते कटी ज़िन्दगी।
पहले काम जौन गुरु दीन्हा। सो सब तन मन प्रेम से कीन्हा।
किंकर दास है नाम हमारा। या बिधि जग ते भा निस्तारा।४।
चौपाई:-
जूठनि सन्तन की हम पावा। अन्त समय हरि धाम सिधावा।
बृद्धावस्था छूटि बन्दगी। याही बिधि ते कटी ज़िन्दगी।
पहले काम जौन गुरु दीन्हा। सो सब तन मन प्रेम से कीन्हा।
किंकर दास है नाम हमारा। या बिधि जग ते भा निस्तारा।४।