१६२ ॥ श्री सिया सरन जी ॥ चौपाई:- लकड़ी कंडा हरि हित ढोवा। तन मन मगन पाप सब धोवा॥ सिया सरन है नाम हमारा। तन छूटा हरि धाम सिधारा।२।