१६३ ॥ श्री जराखन दास जी ॥ चौपाई:- हरि के हित हम फूल उतारा। लाय पुजारी के ढिग धारा॥ तन तजि हरि के धाम सिधावा। नाम जराखन सत्य बतावा।२।