१७१ ॥ श्री राम नेवाज जी ॥
पद:-
मन तुम सुनौ नाम धुनि प्यारी।
ध्यान समाधि प्रकाश खुलै जब छाय जाय उजियारी।
सुर मुनि दर्शैं अनहद बाजै हर दम मंगल कारी।
जोड़ी जुगुल होय तब सन्मुख सीता अवध बिहारी।
जियतै में सतगुरु करि निरखै तब होवै भव पारी।
राम नेवाज़ कहैं बे जाने किमि हो जीव सुखारी।६।