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१७० ॥ श्री राम भरोसे दास जी ॥


पद:-

सतगुरु करि गगन में बारो दिया।

सूरति शब्द क मारग जानो जिहि हित जन्म लिया।

नाम तान खुलि जाय अखण्डित सन्मुख सुघर पिया।

घट ही भीतर सकल पदारथ परदा द्वैत सिया।

या से जीव हेरि नहिं पावत करिखा लाग हिया।

जप तप मुक्ति भक्ति का मानो केवल शब्द बिया।६।