१७६ ॥ श्री ठाकुर चन्द्रिका बक्स जी पंवार ॥
(मुकाम भष्मपुर रियासत में होना, जि. बाराबंकी)
(मिती पौष सुदी सप्तमी सं. १९९३)
चौपाई:-
शिव पूजन जप सधा सो कीन्हा। मानस पाठ में कछु मन दीन्हा॥
संत संघ पंडित औ सज्जन। कीन्ह सदा भा सब दुख भज्जन॥
त्यागा तन प्रयाग में ज्योंहीं। आय गयो सिंहासन त्योंही॥
दिब्य शरीर मिल्यो मन भावा। भूषन बसन गरुड़ पहिरावा॥
उड़े पारषद लै कर जाना। जाय उतारयौ इन्द्र के थाना।५।
दर्शन इन्द्र शची के कीन्हा। चढ़ि सिंहासन फिर चलि दीन्हा॥
पहुँचेन रमा बिष्णुपुर जाई। उतरेन यान से हिय हर्षाई॥
क्षीर समुद्र गयेन चट धाई। पग नहिं डूबे सत्य सुनाई॥
शेष सेज पर जग पितु माता। को बरनै शोभा अति ताता॥
कीन्ह दण्डवत शिर चरनन धऱि। बार बार मुख से जय जय करि।१०।
कर शिर पर धरि मोहिं उठायो। मुख चूम्यो फिर उर में लायो॥
कह्यौ बसौ मम पुर अब जाई। तेइस कोटि बर्ष सुख पाई॥
तब हम वहँ से कीन्ह पयाना। बैठेन आयके सुघर बिमाना॥
झूलन हेतु मिला एक झूला। बे आधार पड़ा सुख मूला॥
जस बैठो तस ढारैं जारी। उड़ै सुगन्ध लगी फुलवारी॥
नर नारी तहँ पर जो राजैं। शोभा लखत काम गति लाजैं।१६।
दोहा:-
कहैं चन्द्रिका बक्स मोहिं, सब प्रकार है सुक्ख।
हरि औ धर्म से जो बिमुख उन्हैं सदा हैं दु:ख॥