१७७ ॥ श्री तन्दुरुस्त शाह जी ॥
पद:-
जीव अकेल असुर दल भारी।
सब से काम लेत निशि बासर माया है महतारी
नेकौं देर करै जहँ कोई नैन फेरि फटकारी।
या से वै जिस काम पै लागैं ता को देत संघारी।
सतगुरु करैं बचैं सो प्रानी तब जावैं ये हारी।५।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि इन्हैं देय करि छारी।
अनहद सुनै देव मुनि आवैं जय जय करैं निहारी।
सन्मुख राम श्याम नारायण तीनौ शक्ती प्यारी।
हर दम लखै न अन्तर होवैं जियति होय बलिहारी।
अन्त जांय तन्दुरुस्त साह कह श्री साकेत सिधारी।१०।